ज़िन्दगी गुलज़ार है
२२ दिसंबर – कशफ़
आज मेरा तामिली दौर खत्म हो गया है. ज़िन्दगी के ये बाब (अध्याय) भी
मुकम्मल (पूरा) हो गया है और अब मुझे अमली ज़िन्दगी में कदम रखना है. आगे क्या होगा? मैं
कुछ नहीं जानती, ना ही मुझे कोई ख़ुशफ़हमी है. अपने मुस्तक़बिल
(भविष्य) के बारे में पुर-उम्मीद (आशापूर्ण) वही होता है, जिसके
पास रुपया हो और मेरे जैसे लोगो का मुस्तक़बिल (भविष्य) तो हमेशा ही गैर-महफूज़ होता
है. कल मैं अपने शहर वापस चली जाउंगी.
अगर एक नज़र कॉलेज के दौर पर डालूं, तो हैरत होती है कि ये
तल्खियों भरा था और कितनी जल्दी गुज़र गया. इस अरसे के दौरान मुझे कोई दोस्त नहीं
मिला, हाँ दुश्मनों की तादात में इज़ाफ़ा ज़रूर हुआ है. ये मेरे
लिए कोई अच्छी खबर नहीं लाया है, बस मेरी जिम्मेदारियों में
इज़ाफ़ा हो गया है. अभी एक तवील (लंबा) सफ़र मुझे तय करना है और मैं जानती हूँ, मैं अपनी मंजिल तक पहुँच जाऊंगी.
आज मैंने एक नज़्म पढ़ी थी. इसकी सिर्फ़ एक लाइन मुझे अच्छी लगी थी.
चंद रोज़ और मेरी जान फक्त चंद ही रोज़”
मेरे दिल को छू लिया था इस लाइन ने. कितना अच्छा होता कि मैं भी
अपने आप को कभी ये कह कर तसल्ली पाती, मगर मेरी परेशनियाँ चंद रोज़ की नहीं हैं. मुझे अभी
बहुत जद्दोजहद करना है. कभी तो सिर्फ सोचकर थकान होने लगती है. मुझे अपनी बहनों के
बढ़ते हुए कद से खौफ़ आता है. मेरे माँ बाप के चेहरे पहले से भी ज्यादा बूढ़े हो गये
हैं और अभी तक हमारे हालत में कोई तब्दीली नहीं आई है.
अगर अल्लाह ने मुझ पर इतनी जिमेदारियाँ डालनी थी, तो
फिर उसको चाहिए था कि वो मुझे ये यकीन भी देता कि वो मुझसे मुहब्बत करता है. फिर
शायद ज़िन्दगी मुझे इतनी मुश्किल न लगती, मगर उसने कभी भी
मुझसे मुहब्बत नहीं की. क्या मैं सिर्फ इसलिए उसे अच्छी नहीं लगती कि मेरे पास
दौलत नहीं है? क्या अल्लाह भी इंसानों में तफ़रीक (फ़र्क,
भेदभाव) करता है. मैं आज फिर परेशान हूँ और ये कोई नई बात नहीं है.
Radhika
09-Mar-2023 04:28 PM
Nice
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Alka jain
09-Mar-2023 04:14 PM
👌👍🏼
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